Himanshu Kumar

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लेखनी प्रतियोगिता -09-Nov-2021

चाह थी उसकी आसमां छूने की 

लेकिन चारदीवारी में कैद रही 

उम्र थी खेलने की उसकी 
परिंदा बनके आसमां में उड़ने की 

मिल ना पाया मौका कभी 
घर से बाहर निकलने की 

एक आश लगा के वो बैठी थी 
किसी दिन आएगा कोई 
छुड़ा लेगा उसे 
इस घर रूपी पिंजरे से 

बीत गई बचपन , आ गयी जवानी 
शादी करके चली गयी , घर जो थी पराई 

वहां का हाल भी कुछ घर जैसा था 
कैदखाना वहां का भी घर जैसा था 


हिमांशु 

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