लेखनी प्रतियोगिता -09-Nov-2021
चाह थी उसकी आसमां छूने की
लेकिन चारदीवारी में कैद रही
उम्र थी खेलने की उसकी
परिंदा बनके आसमां में उड़ने की
मिल ना पाया मौका कभी
घर से बाहर निकलने की
एक आश लगा के वो बैठी थी
किसी दिन आएगा कोई
छुड़ा लेगा उसे
इस घर रूपी पिंजरे से
बीत गई बचपन , आ गयी जवानी
शादी करके चली गयी , घर जो थी पराई
वहां का हाल भी कुछ घर जैसा था
कैदखाना वहां का भी घर जैसा था
हिमांशु